जानिए महापर्व छठ की महत्वपूर्ण जानकारियां, देखिए यह खबर


हमारा इंडिया न्यूज हर पल हर खबर धर्म/लेख। (मुकेश सिंह,आध्यपक,कमला नेहरू नगर , जबलपुर की कलम से)। अन्तर्राष्ट्रीय छठ महापर्व छठ पर्व छठ पष्ठी का अपभ्रंश है । कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस बार दिवसीय व्रत को सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है । कार्तिक शुक्ल पक्ष के पष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा । छठ पर्व छठ पर्व छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के पष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है । सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार , झारखण्ड , पूर्वी उत्तर को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं । धीरे - धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ - साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है । छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवताओं को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए ।



 लोक आस्था का पर्व 

        छठ भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ मूलतः सूर्य पष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व में दो बार मनाया जाता है । पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मानये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है । छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित है , उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये , तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रोपदी ने छठ व्रत रखा । तब उनको मनोकामनाएँ पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला । लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई बहन का है । छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि ( छठ ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है , इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें ( Ultra Violet Rays ) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करन छठ जैसी खगोलीय स्थिति ( चन्द्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर ) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई पृथ्वी पर पुनः सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती है । वायुमंडल के स्तरों में आवर्तित होती हुई , सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती हैं । ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्था के छः दिन उपरान्त आती है । इसका नाम इसीलिए छठ पर्व ही रखा गया है । 

छठ पर्व किस प्रकार मानते हैं ? 

            यह पर्व चार दिनों का है । भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है । पहले दिन सेन्धा नमक घी से बना हुआ अरवा चावल और कछू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है । अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है । व्रति दिनभर अन्न - जल त्याग कर शाम करीब 7 बजे से खीर बनाकर , पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं , जिसे खरना कहते हैं । तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य यानी दूध अर्पण करते हैं । अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य चढ़ाते हैं । पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है लहसून , प्याज वर्जित होता है । जिन घरों में यह पूजा होती है , वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं । अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं । नहाय खाय पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी " नहाय - खाय " के रूप में मनाया जाता है । सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है । इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं । घर के सभी सदस्य व्रति के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं । भोजन के रूप में कद्दू - दाल और चावल ग्रहण किया जाता है । यह दाल चने की होती हैं।

 लोहंडा और खरना

     दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं । इसे खरना कहा जाता है । प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध चावन का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है । इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है । इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है ।

 संध्या अर्ध्य- तीसरे दिन कर्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छूट का प्रसाद बनाया जाता है । प्रसाद के रूप में ठेकुआ जिसे क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं , के अलावा चावल में लड्डू जिसे लहुआ भी कहा जाता हैं । इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छट प्रसाद के रूप में शामिल होता है । 

शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अध्यं देने चाट की और चल पड़ते हैं । सभी छठव्रति एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्ध्य दान संपन्न करते हैं । सूर्य को जल और दूध का अर्ध्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है । 

उषा अर्ध्य-  चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है । व्रति वहीं पुन : इकट्ठा होते हैं । जहाँ उन्होंने पूर्व संध्या को अर्ध्य दिया था । पुन : पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है । सभी व्रति तथा श्रद्धालु घर वापस आते हैं , बति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रहम बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं । पूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं ।

 व्रत-  छठ उत्सव के केंद्र में छट ब्रज है जो एक कठिन तपस्या की तरह है । यह छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है , कुछ पुरुष भी इस व्रत रखते हैं । व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है । चार दिनों के इस व्रत में व्रति को लगातार उपवास करना होता है । भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है । पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं । इस उत्सव में शामिल होने वाले नये कपड़े पहनते हैं । जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गयी होती है व्रति को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है । महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छट करते हैं । ' छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालों साल तब तक करना होता है , जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए । घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है ।

 ' ऐसी मान्यता है कि छट पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है । पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र कुशलता । के लिए सामान्य तौर पर महिलाएँ यह व्रत रखती हैं । पुरूष भी पूरी निष्ठा से अपने मनोवांछित कार्य को सफल होने के लिए की व्रत रखते हैं ।

          भारत में सूर्योपासना ऋण वैदिक काल से होती आ रही है । सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण , भगवत पुराण , ब्रहमा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गयी है । मध्य काल तक छठ सूपपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया , जो अभी तक चला आ रहा है ।

    पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था । सूर्य की किरणों में कई रोगी को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी । ऋषि मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया । सम्भवतः यही छठ पर्व के उद्धव की बेला की बेला रही हो । भगवाल कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था । इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी जिसके लिए शाक्य द्वीपव से ब्राहमणों को बुलाया गया था ।

    छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं । 

        छठ गीत .

          लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय , खरना के समय , अर्ध्य देने के लिए जाते हुए , अर्ध्य दान के समय और धाट से घर लौटते मसय अनेकों सुमधुर और भक्ति - भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं ।

1. केलवा जे फरेला घवट से , ओह पर सुगा मेडराय 

2.काँच ही बाँस के बहंगिया , बहंगी लचकत जाए 

3.सेविले चरन तोहार है छठी मइया । महिमा तोहर अपार ।

4. उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर ।

 5.निंदिया के मातल सुरूज अँखियो न खोले है ।

6. चार कोना के पोखरवा

7. हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी ।

(मुकेश सिंह,आध्यपक,कमला नेहरू नगर , जबलपुर)




 

Post a Comment

Previous Post Next Post

Technology

Connect With us