अनुसंधान बिना विकास, भविष्य में देश दुनिया को डूबा देगा, ऐसा जबलपुर के एक वैज्ञानिक ने कहा, देखिए यह खबर



हमारा इंडिया न्यूज (हर पल हर खबर) देश - दुनिया।विश्व में स्वदेश में ईश्वरीय पर्यावरण पौधे प्राणियों को विविधता है, और उन्हीं के उपयोग से मानवों व पीढ़ियों के जीने की सामर्थ है, अधिकार है। मानके पालन सवास्थ्य के लिए पृथ्वी पौधे जल आकाशवायु सूर्य के साथ की गुण पर्याप्तता होनी चाहिए। इसलिए अनुसंधान के आधार पर विकास कार्य कहने की प्रथा पूर्व से रही है ताकि ईश्वरीय देने पीढ़ियों के लिए भी कायम रहें। देश के संविधान कानून संस्कृतिया कर्तव्य, धर्म, पर्यावरण संरक्षण के लये बने है, परन्तु आजकल पर्यावरण पौधेयों पर बनाया समझे बिना नागरिकों एवं शासन के द्वारा विकास कार्य किये जा रहे है, उनसे पर्यावरण की क्षति सूर्य तापमान में वृद्धि सूर्य वायुको अतिबा आदि समस्याएं बढ़ रहे हैं। जैसे नीचे में वर्णित है।


डॉ. प्रेम सिंह, कृषि एवं वानिकी वैज्ञानिक, जबलपुर


1. परम्परागत प्राकृतिक जैविक खेती की जगह आधुनिक यात्रिक, रासायनिक कृषि का विकास हमारे पूर्वज गांव में देशी पशुपालन के साथ विविध फसलों की कृषि वानिकी बैलों व श्रमिकों द्वारा पशु पौधों के जैविक खादों से. (जैविक कीटनाशकों के चारों की निवाई कर वर्ण जल का संरक्षण, सिंचाई करके फसले उपजाई जाती थी, पकी फसलों की कटाई श्रमिकों द्वारा मैलों से फसलों की महाई व वायु के सहारे डावनी करके मूसा दाना अलग किये जाते रहे हैं उपजे शुद्ध होती रही है। पाले हुए पशुओं को पासों का मूसा व फसलों की निदाई से निकला हरा चारा, प्यार, बाजरा, मक्का की कर्मी एवं अन्नो की मिसाई से जो गुनी, चोकर, तिलहनों से निकला तेल खत्ती सब्जियों के छिलके खिलाये जाते थे। गांव के सभी श्रमिकों को किसानों के कृषि पशुपालन खादय उद्योग, हल बखर की बनवाई व तालाब निर्माण मकानों के निर्माण मरम्मत में रोजगार मिलता था। श्रमिकों का जीवन यापन गांव के कृषि कार्यों से हो जाता था और वे गांव से पलायन नहीं करते थे परन्तु वर्ष 1960 के पश्चात् शासन द्वारा प्रति प्रदेश के गांव में व्यापारियों द्वारा निर्मित यत्रों से रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशको खरपतवारनाशकों के प्रयोग से फसलों की कृषि करवाने प्रसार किया जाने लगा। अतः किसानों की कृषि की लागत बढ़ गई है व यंत्रों से कृषि करने के कारण श्रमिकों को काम न मिलने से वे गांव से पलायन कर शहरों में आ गये है। पशुविहीनत्र रासयनिक कृषि करने से भूमि व पर्यावरण तत्वों में प्रषण होने लगा व उत्पादित अन्त सब्जी फल षित होने लगे सेवन करने वाले मानव बीमार होने लगे। किसानों द्वारा खेतों की जुताई, फसलों की बुबाई ट्रैक्टर से किये जाने से वायु में प्रदूषण ताप बढ़े है। पकी फसलों की कटाई हारवेस्टर से करवाई जाती है उससे फसलों के डंडल (पराली खेतों में रह जाती है, किसानों द्वारा पराली खेत में जलाई जाती है, जिससे भूमि


सूक्ष्मजीव जल जाते है च तापमान बढ़ते है। में 2. जलस्रोत बनाने की प्राचीन विधिया और आधुनिक समय की विधिया प्राचीन कुआ बावली की जगह नलकूपों का निर्माण किया जाना पूर्वज जो कुआ, बावली बनाते थे उनसे पेय जल, सिंचाई जल मिलता था और वर्षा जल संचय होता था. भू-जल स्तर कायम रहता था। आधुनिक समय में नलकूपों के निर्माण किये जाते हैं, जिनसे पेयजल व सिंचाई जल कुछ वर्षों तक मिलता है परन्तु वर्षा जल संरक्षित नहीं होता है, मू-जल घटता जाता है. कुछ वर्षों बाद इनसे पानी मिलना बंद हो जाता है।


प्राचीन सरोवरों तालाबों की जगह आधुनिक युग में शासन द्वारा बड़े-बड़े डेम बनाये जाना 3. मकान निर्माण की प्राचीन विधि और आधुनिक समय में मकान निर्माण की विधि कलमे के घर बनाये जाते थे जिससे मिट्टी पर्याद नहीं होती थी, मकान कम लागत में बन जाते थे, वे गर्मी में गर्म नहीं होते थे, स्वास्थ्यवर्धक होते थे। मकान गिरने पर उसने खेती की जाती थी परन्तु आजकल उनकी जगह सीमेन्ट काट के जो मकान बनाये जाते हैं उससे पौधे सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। मकान स्वास्थ्यवर्धक नहीं होते है ये गर्मी में गमते है।


4. गांव केउर कॉग्रेटी शहर, कमिटी मकान दुकान कार्यालय, विद्यालय, अस्पताल, मन्दिर मस्जिद, फ्लाई ओवर बनाते


चढ़ाते जाने से कृषिभूमि पौधे बर्वाद होते जाते है. भू-जल स्तर घटते जाता है, और गर्मी में तापमान बढ़ जाता है। काउंटी इमारते गिरने पर पीढ़ियों के लिये मलबा फेंकना समस्या होगी। उस समय उसमें रह रही पीढ़िया दम कर मर सकती है।


5. आजकल जरूरत से ज्यादा बड़े प्रति व्यक्ति कोटी मकान, दुकान व शासकीय निजी कार्यालय, विद्यालय, अस्पताल, अधिकारियों नेताओं के आवास मन्दिर मस्जिद बनाये जाते है, जिससे ज्यादा कृषिभूमि पौधे जल बर्बाद होते हैं, भू-जल स्तर घटता है एवं तापमान में वृद्धि होती है। जबलपुर में शासन द्वारा बनवाये गये कई भव्य कविटी ईमारते खाली पड़ी है।


6. त्यौहारों पर्वों के मनाने की प्राचीन विधि एवं त्यौहारों पर्वो के मनाने की आधुनिक विधि हमारे पूर्वज हर त्यौहार पर्व सादगी से परम्परा विधि विधान से मनाते थे, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण नहीं होता था, बल्कि हर त्यौहार पर्व में घर परिसर की स्वच्छता की जाती थी दूसरों से मेल मिलाप किया जाता था परन्तु आजकल ज्यादातर नागरिक हर त्यौहार पर्व भौतिकवादी ढंग से मनाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं, मूर्तियों को नदी तालाब जल में बहाते है जिससे पर्यावरण तत्वों में प्रदूषण बढ़ता है तापमान में वृद्धि होती हैं. कई लोगों के जीवन खतरे में -पड़ते हैं।


7. मानवों के यातायात के प्राचीन साधन और यातायात के आधुनिक साधन :- हमारे पूर्वज प्र पैदल घोड़े से य साईकिल रिक्शा से चलते थे जिससे शरीर का व्यायाम हो जाता था। आकाश वायु में प्रदूषण व तापवृद्धि नहीं होते थे। परन्तु आधुनिक समय में व्यापारियों द्वारा ज्यादा धन के लिये पृथ्वी के तत्वों से निर्मित कार, मोटर स्कूटर मोटरसाइकिल से अधिकांश शहरी मानव यात्रा करते हैं, उनके बच्चे भी इन्ही वाहनों से चलते है, जिससे आकाश वायु में प्रदूषण एवं तापमान में वृद्धि प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। इन वाहनों में खर्च भी ज्यादा लगता है और मानवों की एक्सीडेन्ट से मृत्यु या अपंगता भी होती है। ज्यादा वाहनों से विश्व की वायु में प्रदूषण ताप वृद्धि ज्यादा होते है। आज वे मजदूर भी स्कूटर से चलते है जिन्हें भारत शासन मुख में अन्न देती हैं।

 8. प्राचीन काल के उद्योग धन्धे एवं वर्तमान काल के उद्योग धन्धे :- हमारे पूर्वज छोटे-छोटे उद्योग धन्धे श्रमिकों द्वारा संचालित करवाते थे, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण नहीं होता था। वर्तमान समय में बड़े-बड़े उद्योग, यंत्रों से संचालित किये जाते हैं जिनसे जलवायु में प्रदूषण होते हैं, और सूर्यताप में तापवृद्धि होते है। शहरों में कचरे के निस्तारण की विधि :- शहर में एकत्र हुए जैविक कचरे से खाद बनाई जानी चाहिए, परन्तु जहाँ नगर निगम के सफाई कर्मी व नागरिक कचरे को आग लगाकर जलाते है उससे अकाश वायु में प्रदूषण व 9.तापवृद्धि होते है।


10. प्राचीन काल के युद्धों और वर्तमान समय के युद्धों के हथियार, शस्त्र :- प्राचीन काल में जैसा इतिहास बताता है, शिव जी, श्री रामचन्द्रजी व श्रीकृष्ण अर्जुन, जिन राक्षसों से युद्ध किये थे वे धनुध बाण से सिर्फ योद्धाओं का यह किये थे। उनके हथियारों व शस्त्रों से प्रकृति पौधे व प्राणियों के विनाश नहीं हुये थे, परन्तु वर्तमान समय में जिन हथियारों से दो देशों के बीच युद्ध किये जाते है उससे पर्यावरण पौधे प्राणियों के विनाश होते है जैसे आजकल यूक्रेन देश के राष्ट्रपति को मारने के लिये रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन जी जिन हथियारों एवं औजारों का उपयोग कर रहें हैं उससे यूक्रेन के पर्यावरण व बनी इमारतें एवं प्राणी विविधता नष्ट तो हो ही रहे हैं, उसके अलावा पूरी दुनिया के पर्यावरण तत्वों में प्रदूषण एवं तापमान की वृद्धि हो रही हैं जो विश्व मानवों, प्राणियों के सेहत पर लम्बे समय तक असर करेंगा।


11. देवी देवों के प्राचीन मन्दिरों एवं आजकल शासन द्वारा निर्मित मन्दिरों में अन्तर है:- प्राचीन देवी देवों के मन्दिर प्रायः उन जंगली पहाड़ियों पर जहां उनका निवास स्थान था वही बनाये जाते थे व इस ढंग से बनाये गये थे ताकि उनका कार्य निवास जीवन शैली प्रदर्शित हो। परन्तु आजकल जो मन्दिर बनाये जाते हैं ये कहीं भी कृ षिभूमि पर बनाये जाते हैं, और उसके इर्दगिर्द काक्रीटी करण किया जाता है। उनका रहन-सहन जीवन शैली प्रतिबिम्बित नहीं होती है। कांक्रीट बिछाने से पीढ़ियों की भूमि बर्वाद हो जाती है।


उपरोक्त प्रकार के अनुसंधान बिन किये गये विकास कारण देश दुनिया में पर्यावरण पौधे, प्राणियों के विनाश होते हुए अब स्पष्ट दिखने लगे हैं। इस वर्ष विश्व स्तर पर बढ़े हुए वायु में प्रदूषण तापमान वृद्धि कारण, सूर्य वायु के प्रकोप कारण अधिकांश देशों के अधिकांश प्रदेशों में जुलाई से अक्टूबर तक अतिवर्षा बाढ़ हुई है, जिससे कई पहाड़ टूटे हैं, लाखों हेक्टर की कृषि एवं हजारों इन्सानों पशुओं एवं मानवों के बनाये घरों, धन की क्षति हुई है, व बीमारिया बढ़ी हैं। इसके अलावा कई देशों में वैश्विक गर्मी के कारण ग्लेशियर पिघल रहें है. जिससे समुद्रों का जल स्तर बढ़ा है, और समुद्रों में तूफान हुये है। यदि इसी तरह वायु में प्रदूषण व गर्मी बढ़ाने वाले विकास कार्य देश दुनिया में होते रहेंगे तो भविष्य में कुछ वर्षों में सूर्य द्वारा ऐसा जल प्रलय होगा कि देश दुनिया की अधिकांश भूमि डूब जायेगी, और पौधे प्राणी नष्ट हो जायेंगे। देश का कुछ सौभाग्य है कि मुझ जैसे वैज्ञानिकों की समझ के अनसार भारत सरकार के मान प्रधानमंत्री जी व प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री जी ने पर्यावरण सुधार हेतु भारत स्वच्छता अभियान के अलावा वर्ष 2020-21 से आत्मनिर्भर भारत बनाने, प्राकृतिक खेती बढ़ाने, वर्षा जल संरक्षण हेतु सरोवरों तालाबों के निर्माण, जल जीवन मिशन एवं ग्रीनसिटी, वायु स्वच्छता हेतु कार्यक्रम पौधों के रोपण प्रारंभ किये गये है। परन्तु उन कार्यक्रमों की सफलता सही क्रियान्वयन से होगी। करीब 1 वर्ष पूर्व विश्व राष्ट्र संघ की बैठक अमेरिका के राष्ट्रपति श्री वाईडेन द्वारा आयोजित की गई थी, जिसमें कई राष्ट्रो के राष्ट्राध्यक्षों ने अपने राष्ट्र में कार्बन उर्त्सजन 2050 तक बंद करने वचन दिये थे, और भारत के प्रधानमंत्री जी स्वदेश में 2070 तक कार्बन उर्त्सजन बंद करने का वचन दिये थे। मेरे अनमान के मुताबिक यदि आज जैसे ही देश दुनिया में कार्बन उर्त्सजन एंव तापमान की वृद्धि होते रहेंगे, तो 2050 से 70 तक 2 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान बढ़ जायेगा, और उस समय तक दुनिया की ज्यादा से ज्यादा जमीन जल प्रलय कारण डूब जायेगी, और तब तक ये राष्ट्राध्यक्ष भी नहीं रहेंगे, उनके वचन व्यर्थ है। उन्हें अभी से सही करना चाहिए। जिन्हें स्वपीढ़ियों को बचाने की फिक्र हो, वे मेरे साथी और सारथी बन जायें। पर्यावरण पौधे प्राणियों की रक्षा हो, शासकों तक यह संदेश पहुँचायें। प्रकृति की रक्षा मानवों का काम है, मानवों की रक्षा प्रकृति का काम हैं। देश पृथ्वी को बचाना शासन का काम है, जो प्राणियों, पीढ़ियों का धाम है। 7 से 18 नवम्बर 2022 के दौरान मिश्र में पर्यावरण शिखर सम्मेलन होने वाला है। हमारी आवाज वहाँ तक पहुचेगीं, तो कार्यक्रम निर्धारण में मदद मिलेगी।

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