देखिए बागेश्वर धाम वाले महाराज जी की आज पूरी यह कथा, आप भी श्रवण कर कमाएं पुण्य लाभ और दूसरों को भी करें शेयर

हमारा इंडिया न्यूज (हर पल हर खबर) मध्यप्रदेश/जबलपुर। दुख से भरे इस संसार की हर बाधा पार करनी है तो भगवान का बनना ही एक मात्र उपाय है। इस आशय के उद्गार श्री बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने पनागर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ से व्यक्त किए। गोकर्ण-धुंधकारी कथा प्रसंग समझाते हुए महाराजश्री ने कहा कि भगवान का भक्त बनने के बाद कोई कभी रोता नहीं है वरन सदा मुस्कुराता रहता है। उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कभी महात्माओं को रोते देखा है? महात्मा यदि रोते नहीं हैं, तो इसका कारण सिर्फ यही है कि वे भगवान के प्रेम में डूबकर सदा मुस्कुराते रहते हैं। धुंधकारी कथा ये बताती है कि भागवत कथा के श्रवण से जीवन की बाधाएं ही दूर नहीं होतीं, प्रेत बाधा से भी मुक्ति मिल जाती है। भागवत कथा जिंदा व्यक्ति को तो मुक्ति करती ही है, मरने के बाद उसके नाम पर कोई कथा सुनवा दे, तो भी दिवंगत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने कहा कि धुंधकारी ने मुक्त होकर भागवत कथा की महिमा गाई है।




जबलपुर है संस्कारों की नगरी-:उन्होंने कहा कि जबलपुर ऋषि जाबाली के नाम पर प्रसिद्ध है। जबलपुर संस्कारों की राजधानी है। यहां रह कर भी संस्कार न निखरे तो ये दुर्भाग्य है। निखरने का आशय समझाते हुए उन्होंने कहा कि तन को निखारोगे तो काम से भरोगे, मन को निखारोगे तो राम से भरोगे। तन के लिए साबुन की जरूरत पड़ती है, पर मन को निखारने के लिए कथा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जबलपुर अब इतिहास रच रहा है। यहां का हर व्यक्ति सीताराम-सीताराम कह रहा है।




ज्ञान और भक्ति में महीन अंतर-:ज्ञान और भक्ति में अंतर स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान लघु है, भक्ति  विराट। ज्ञान मां है, ज्ञान पुत्र। ज्ञान के होने से स्व का अभिमान बना रहता। अभिमान में ‘मैं’ होता है और भक्ति में तू। सब कुछ तुमसे, सब कुछ तेरा। लेकिन जहां न ज्ञान होता न भक्ति वहां तू-मैं, तू-मैं होता रहता।


कौन है ठाकुरजी का दीवाना-: उन्होंने कहा कि पनागर के पागलो कभी खुद से पूछो कि मैं ठाकुर जी का दीवाना हूं या नहीं हूं। हृदय में प्रेम होगा तो हृदय गायेगा कि तेरी बांकी अदा ने ओ सांवरे हमें पागल दीवाना बना दिया। उन्होंने बताया कि कथा उससे सुननी चाहिए जो विरक्त हो, वैष्णव हो, ब्राम्हण हो ,भगवान का उपासक हो, वीर हो गंभीर हो लालची न हो। ऐसेवक्ता से भगवान की कथा सुनने से ही भागवत का फल प्राप्त होता है।

प्रभु चरित स्मरण से बनता है  जीवन चरित्र:-भागवत की उत्पत्ति की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वेदव्यास को जब संत मिले, तब उनके भीतर से भागवत फूटी। वेदव्यास को नारद जी मिले तो उन्होंने कहा कि इतने ग्रंथ लिखे फिर भी मन कह रहा कुछ रह गया। तो नारदजी ने कहा भगवान की बाललीला का चरित्र करिए। इस तरह भागवत का उनके मन में अभ्युदय हुआ।


ऐसे करें मन को शांत-:महाराजश्री ने कहा कि यदि मन को शांत करना है तो इसके 6 उपाय हैं। एकांत में रहने का अभ्यास करिए, अल्प भोजन करिए, मौन रहिए, किसी से आशा मत रखिए, इंद्रिय सय्यम करिए,  प्राणायाम करिए। भारत के महान हिंदू धर्म पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जिस दिन यहां के 40 फीसदी लोग रामचरित मानस पढ़ने लगेंगे, तीस करोड़ तिलक लगाने लगेंगे उसी दिन भारत हिंदू राष्ट घोषित हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह विवाहित स्त्री की निशानी माथे पे सिंदूर गले में मंगलसूत्र है। उसी तरह हिंदू की निशानी माथे पे भगवान के नाम का तिलक और गले में राम के नाम की कंठी माला है।


तिवारी परिवार ने की आरती-:कथा के प्रारंभ में आयोजक पनागर विधायक इंदू तिवारी, माया तिवारी, संध्या तिवारी, राजकुमारी तिवारी, हीरा तिवारी, अमित तिवारी, रोबिन तिवारी, राजीव तिवारी, श्वेता तिवारी, किशोर मिश्रा मधु दुबे आदि ने व्यास पीठ का पूजन कर भागवत भगवान की आरती की।

महाराजश्री के श्रीमुख से----

* वासना से बचना तो चलचित्र देखना तुरंत बंद करो।

* सुखी जीवन के लिए सूर्योदय के पहले स्नान करो।

* तन को निखारने से काम मिलता मन को निखारने से राम।

* माया का मतलब वह दृश्य जो दिख तो रहा पर है नहीं।

* जैसे हवा का कोई रूप नहीं, वैसे ही कृ पा का कोई रूप नहीं।

* रोना कायरों का काम है, मुस्कुराना पागलों का काम है।

* संसार के सारे रंगों से बड़ा रंग हमारे घनश्याम का है।


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