क्या कहता है डाटा और स्थानीय रिपोर्टें
मध्यप्रदेश सरकार की जानकारी के अनुसार प्रदेश में कुल 783 मुख्यमंत्री संजीवनी क्लिनिक स्वीकृत हैं और इनका निर्माण-उन्नयन जारी है; सरकार ने शहरी क्षेत्रों में निर्माण और उन्नयन की समीक्षा तेज़ करने के निर्देश दिये हैं।
स्थानीय जबलपुर रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि जिले में पहले 79 संजीवनी क्लिनिक खोलने की योजना थी — पर अब तक केवल लगभग 14 क्लिनिक ही चालू/गतिविधि में दिख रहे हैं (स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या अलग है और समय के साथ बदल सकती है)। इस अंतर ने लोगों में उपेक्षा और सवाल खड़े कर दिए हैं।
नोट: ऊपर दिया गया स्थानीय आंकड़ा (79 बनाम 14) स्थानीय समाचार/वीडियो रिपोर्टों पर आधारित है — यह आधिकारिक जिलास्तरीय प्रकाशित सूची से प्रत्यक्ष मिलान कर के सत्यापित किया जाना चाहिए।
असल समस्या — डॉक्टरों की कमी और प्रभाव
स्थानीय क्लिनिकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और नियमित मेडिकल स्टाफ (MBBS/एमडी डॉक्टर, नर्स, लैब टेक्नीशियन) की कमी की शिकायतें मिल रही हैं। इससे रोगियों का प्राथमिक इलाज न हो पाता, डायग्नोस्टिक सुविधाओं का अभाव रहता और तत्काल रेफर/रुकावटें बढ़ती हैं। (स्थानीय रिपोर्टों और क्षेत्रीय खबरों का संकलन)।
डॉक्टरों की कमी के कारण मरीज/परिवार बढ़कर निजी क्लिनिक या बड़े हॉस्पिटल की ओर जाते हैं — जिसका आर्थिक बोझ बढ़ता है और सुविधा उपलब्ध न होने पर इलाज में देर भी होती है। (स्थानीय पर्यवेक्षण और मीडिया कवरेज)।
राज्य सरकार की पहल और चर्चा
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग की हालिया समीक्षा बैठकों में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, डॉक्टर भर्ती और आयुष्मान योजना की पहुँच बढ़ाने पर चर्चा हुई है। समीक्षा में भर्ती नियमों, बॉन्डेड डॉक्टरों का उपयोग और मेडिकल कॉलेजों के विस्तार जैसे मुद्दे भी उठाए गए हैं — जिनके क्रियान्वयन से क्लिनिकों में डॉक्टर उपलब्धता बेहतर हो सकती है।
जमीनी कारण
इन्फ़्रास्ट्रक्चर तो है, पर स्टाफ नहीं — भवन/कक्ष तैयार होने पर भी डॉक्टर, सहायक स्टाफ व निदेशक सेवाएँ अनुपलब्ध रहना।
भर्ती और तैनाती के प्रोसेस धीमे — सरकारी भर्ती/बोनट-शर्तें और नियुक्ति-जटिलताएँ रोक बनती हैं।
लोकल मॉनिटरिंग में कमी — क्लिनिक संचालन और नियमित निरीक्षण का निरंतर फॉलोअप नहीं होने की चर्चाएँ।
मरीजों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए असर
आकस्मिक/प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से सामान्य बीमारियों का समय पर इलाज नहीं हो पाता।
गर्भवती माताओं, बच्चों और बुजुर्गों को प्राथमिक देखभाल के लिए दूरी तय करनी पड़ती है।
निजी क्षेत्र पर भार बढ़ता है — खर्चीला होने के कारण ग़रीब वर्ग को असुविधा होती है।
क्या किया जा सकता है — सुझाव
तुरंत स्टाफ ऑडिट और पारदर्शी सूची जारी — जिलेवार किन क्लिनिकों में कितने चिकित्सक/नर्स तैनात हैं, उसकी सार्वजनिक सूची जारी हो। (सरकारी मॉनिटरिंग चाहिए)।
अस्थायी/कॉन्ट्रैक्ट डॉक्टर्स की तैनाती जहाँ स्थायी नियुक्ति लंबित हो — ताकि क्लिनिक की सेवाएं कम समय में चलें।
मेडिकल कॉलेजों व पोस्टग्रैजुएट नियुक्तियों का त्वरित उपयोग — नए मेडिकल कॉलेजों के कोर्स पूरा होने पर स्थानीय सेवा-आवश्यकताओं के साथ तालमेल।
स्थानीय समुदाय और निजी साझेदारी — कुछ सेवाएँ (जैसे लैब/डायग्नोस्टिक्स) पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के ज़रिये शॉर्ट टर्म में उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
निष्कर्ष
जबलपुर में मुख्यमंत्री संजीवनी योजनाओं के अंतर्गत स्वास्थ्य केन्द्रों का नेटवर्क बनना सकारात्मक कदम है — मगर क्लिनिकों की संख्या बनाम चालू संचालन और डॉक्टरों की उपलब्धता में बड़ा अंतर बोझ बढ़ा रहा है। राज्य स्तर पर उठाई जा रही नीतिगत पहलें (भर्ती, मेडिकल कॉलेज एक्सपेंशन, बॉन्ड संशोधन) सही दिशा में हैं; पर ज़मीनी क्रियान्वयन और पारदर्शी, जिलेवार स्टेटस-रिपोर्टिंग तत्काल आवश्यक है ताकि आम नागरिकों को घोषित योजनाओं का वास्तविक लाभ मिल सके।
यहाँ स्थानीय समाचार शैली में तैयार की गई विस्तृत खबर प्रस्तुत है, जिसमें पंडित मोतीलाल वार्ड, लेमा गार्डन आवास योजना स्थित मुख्यमंत्री संजीवनी क्लिनिक (B1/2) के हालात को केंद्र में रखा गया है। आप चाहें तो इसमें नाम/तारीख/बयान जोड़कर इसे और तीखा बनाया जा सकता है।
जबलपुर: लेमा गार्डन आवास योजना स्थित संजीवनी क्लिनिक B1/2 बदहाल, डॉक्टरों व सुविधाओं की कमी से मरीज परेशान
जबलपुर। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग (म.प्र. शासन) की महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री संजीवनी स्वास्थ्य क्लिनिक योजना के तहत पंडित मोतीलाल वार्ड अंतर्गत लेमा गार्डन आवास योजना में संचालित संजीवनी क्लिनिक B1/2 इन दिनों बदहाली का शिकार नजर आ रहा है। क्षेत्रीय नागरिकों का आरोप है कि क्लिनिक भवन होने के बावजूद यहां नियमित डॉक्टरों की उपलब्धता नहीं है, जिससे आम मरीजों को इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है।
डॉक्टर नहीं, इलाज अधूरास्थानीय रहवासियों के अनुसार, संजीवनी क्लिनिक B1/2 में कई बार डॉक्टर अनुपस्थित रहते हैं या सीमित समय के लिए ही सेवाएं दी जाती हैं। इसके चलते बुखार, सर्दी-खांसी, ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी सामान्य बीमारियों के मरीजों को भी निजी क्लिनिकों का सहारा लेना पड़ता है। योजना का उद्देश्य गरीब और मध्यम वर्ग को निःशुल्क प्राथमिक इलाज उपलब्ध कराना था, लेकिन डॉक्टरों की कमी ने इस उद्देश्य को कमजोर कर दिया है।
दवाइयों और जांच सुविधाओं की भी कमी
क्लिनिक में आने वाले मरीजों का कहना है कि कई बार आवश्यक दवाइयां उपलब्ध नहीं रहतीं, वहीं प्राथमिक जांच की सुविधाएं भी सीमित हैं। गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए यह स्थिति और भी चिंता का विषय बन रही है। मरीजों को पर्ची कटवाने के बाद दवा बाहर से खरीदने को मजबूर होना पड़ता है।
समय पर खुलना भी बना सवाल
स्थानीय लोगों का यह भी आरोप है कि क्लिनिक के खुलने-बंद होने का समय नियमित नहीं है। कई बार दूर-दराज से आए मरीजों को यह कहकर लौटाया जाता है कि डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं या स्टाफ नहीं आया है। इससे योजना के प्रति आम जनता का भरोसा कमजोर हो रहा है।
वार्डवासियों में आक्रोश
पंडित मोतीलाल वार्ड के नागरिकों ने प्रशासन से मांग की है कि लेमा गार्डन आवास योजना स्थित संजीवनी क्लिनिक B1/2 में स्थायी डॉक्टर और पूरा मेडिकल स्टाफ तत्काल नियुक्त किया जाए। साथ ही दवाइयों की नियमित आपूर्ति और समयबद्ध संचालन सुनिश्चित किया जाए, ताकि जरूरतमंदों को वास्तविक लाभ मिल सके।
प्रशासनिक उदासीनता पर सवाल
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि शहर में संजीवनी क्लिनिकों की संख्या तो दिखाई जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत में कई क्लिनिक केवल नाम के रह गए हैं। लेमा गार्डन का यह क्लिनिक भी उसी कड़ी का उदाहरण बनता जा रहा है।
निष्कर्ष
मुख्यमंत्री संजीवनी योजना आमजन के लिए एक सशक्त स्वास्थ्य सुरक्षा कवच बन सकती है, लेकिन लेमा गार्डन आवास योजना स्थित संजीवनी क्लिनिक B1/2 जैसे हालात यह दर्शाते हैं कि डॉक्टरों और संसाधनों की कमी के चलते योजना का लाभ पूरा नहीं मिल पा रहा। यदि समय रहते सुधार नहीं हुआ तो लोगों का भरोसा इस जनकल्याणकारी योजना से उठ सकता है।



